“बचपन” वाले पुराने दिन…
हे… ईश्वर अर्ज हमारी सुन लो,
लौटा दो वो नासमज वाले पुराने दिन,
कुछ न समझते थे, नादान थे अच्छा था….!
दुनियादारी की हमें परवाह न थी,
दुःख दर्द की कोई पीड़ा होती भी है,
उसकी समझ न थी…!!
इच्छाएँ,आशाएँ, कुछ पाने की तमन्ना न थी,
बस.. खेलते थे और मौज मस्ती करते थे,…!
घर के मानो, हम राजा थे,
जैस सब हम पे मरते थे,
जो मागो मील जाता था…!!
खाना-पीना मौज करना कितने हसीन वो लम्हें थे,
नादानी वाले वो हर पल कितने सुहाने थे..!
वो सब फिर से लौटा दे, हे…. प्रभु..!..!
वो “बचपन” वाले दीन कितने खूबसूरत थे…!!!