बचपन मे भीगकर अच्छा हो गया
काली काली नीली भूरी
घन घनघन घनघोर घटायें
टिप टिप टुप टुप बूदें उछलें
बरसे पानी चले हवायें
अधगिरी दालान मे ऐठे बैठे
आधे बैठे आधे लेटे
कुर्सी से सर टेके टेके
कुछ जागे कुछ कुछ उनींदे
आँखें झपकीं लौटा बचपन
आंगन में हम छपक रहे थे
मेढ़क जैसे उछल रहे थे
लेट केे दरिया तैर रहे थे
नाव नवइया खेल रहे थे
बिजली लपकी यादें भागी
बदन तरबतर पलकें भीगी
बिस्तर भीगा खटिया भीगी
टेबल भीगा कुर्सी भीगी
छत से पानी टपक रहा था
कोने मे जुगनू चमक रहा था
चिंता मुश्किलें सब फीकी हो गई
जटिल परिस्थितियां हल्की हो गई
दो घड़ी ‘अयन’ फिर बच्चा हो गया
बचपन मे भीगकर अच्छा हो गया
दो घड़ी ‘अयन’ फिर बच्चा हो गया
एम तिवारी “अयन”