बचपन मेरा..!
बचपन मेरा निकल रहा,
जवानी की और चल रहा,
वो डर मुझे यूं खल रहा,
मैं डर रहा, मैं मर रहा,
हर पल यूं ही तड़प रहा,
ना दुख में कोई संग रहा,
ना जग में कुछ बच रहा,
वो मुझ पर यूंही हस रहा,
मन में वो मेरे फस रहा,
सूरज यूंही ढल रहा,
मैं जीवन में विफल रहा,
क्यूं ना वो सफल रहा,
अब न ही कोई फल रहा,
कर्म भी न संभाल रहा,
चैन डगमग सा हो रहा,
मैं ही अब सो रहा,
बस जीवन में वो फैल रहा,
अंधेरा यूं ही फैल रहा,
मैं लड़ रहा, पर गिर रहा,
मैं चल रहा, पर लचक रहा,
ना सड़क पता,ना मंजिल,
पर कोशिश यूं ही कर रहा,
मैं चल रहा..
मैं चल रहा,
बचपन मेरा निकल रहा,
जवानी की और चल रहा..!