बचपन में थे सवा शेर
बचपन में थे सवा शेर जो
यौवन आते वो शेर हो गए
सच्चाई इन शेरों की सुनिए
शादी होते सब ढ़ेर हो गए—बचपन में
जानें कैसा जीवन आया
भूले अपना और पराया
बीबी के आधीन हो गए
भूले हैं अपना मन भाया
माॅ॑ के लिए बादाम थे कभी
कब झाड़ी के बेर हो गए—बचपन में
फूलों के जैसा था बचपन
भंवरे की भांति था यौवन
आज सभी ऐसे मुरझाए
ज्यों पतझड़ में पेड़-लताएं
जो पहले थे गुलाब बसंती
सूखी हुई कनेर हो गए—बचपन में
जीवन की कड़वी सच्चाई
‘V9द’ रह गई हैं परछाई
बचपन यौवन कहीं नहीं है
मैं तुम वो हम कहीं नहीं है
जिम्मेदारियों का बोझ पड़ा
थे कुछ कुछ और हो गए—बचपन में