बचपन में ” *च* ” का अनूठा खेल
बचपन में ” च ” का अनूठा खेल
——————————————–
करीब 50 साल पहले हम अपने बचपन में एक अनूठा खेल खेलते थे। जो शब्द भी बोलना होता था, उसमें हर अक्षर से पहले ” च ” लगा देते थे । उदाहरण के तौर पर अगर यह कहना है कि
” कल पाँच बजे आना”
तो उसे इस प्रकार कहते थे
” चक चल चपाँ चच चब चजे चआ चना”
जिनको शब्दों का यह रहस्य पता होता था कि हर अक्षर से पहले च लगा है, वह बच्चे समझ जाते थे और जो इस रहस्य से अपरिचित होते थे वह मुँह ताकते रह जाते थे ।
इसमें बोलना भी बड़ा कठिन रहता था। देखने में तो यह आसान लगता है कि हमने हर अक्षर से पहले च लगा दिया । लेकिन फुल स्पीड में धाराप्रवाह च लगाते हुए शब्दों को बोलते चले जाना बहुत कठिन होता था। जितनी तेजी के साथ च लगाते हुए बोला जाएगा, उतना ही अपरिचित व्यक्ति को समझ में नहीं आएगा । अगर धीरे-धीरे बोलेंगे और उसकी समझ में आ गया कि यह च लगा रहे हैं तो सारा खेल बिगड़ जाएगा ।
कुछ बच्चे यह खेल समझ तो जाते थे और उन्हें बताया भी जाता था कि हर अक्षर से पहले च लगाना है। लेकिन उसके बाद भी जो वाक्य बोला जाता था ,वह उसे नहीं समझ पाते थे। इस तरह खेल चलता रहता था । कुछ बच्चे पास होते थे । कुछ फेल होते थे । कुछ औसत दर्जे के नंबर लाते थे। यह खेल हमारे पिताजी ने हमको सिखाया था।
—————————————————
लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451