बचपन फिर लौट कर ना आया
गिरते संभलते बचपन किसी मोड़ पर छूट गया
तो फिर बच्चा बनकर दिल में मचलता कौन है
पीपल की छांव बरगद की मुस्कान अब नहीं है
बचपन की कोई बात नहीं करता हर कोई मौन है
बालपन की शैतानियां, संकरी गलियां याद आते हैं
सुना है अमुआ के बाग से गायब मतवाली पौन है
आसमां में कड़कती बिजलियां और गरजते बादल
बरसात की रिमझिम बूंदें हाथ में कागज की कश्तियां
जिम्मेदारियों के बोझ से कोसों दूर थे तब हर पल
पलक झपकते ही जाने कहां गई बचपन की मस्तियां
नुक्कड़ नुक्कड़ हमारी ही शरारतों के चर्चे होते थे
पता नहीं कब उजड़ गई बचपन के यारों की बस्तियां
अमुआ के बाग में सावन के झूलों की सुगबुगाहट
आषाढ़ की रिमझिम बूंदों में गोरी का भीगा बदन
मौसम खिलखिलाता था देख कर उसकी अदाएं
आसमान भी इतराया था लगाकर माथे पर चंदन
यारों की पतंग को काटने का मजा ही कुछ और था
हमारी हरकतें देखकर मंद मंद मुस्कराता था गगन