-: बचपन जैसा कुछ नही :-
मज़दूरी करना हमारी , मजबूरी है कोई शौक़ नहीं ,
हमारा भी एक बचपन है ,जिसमे बचपन जैसा कुछ नहीं ,,
मंदिरों में लगाए जाते है , छप्पन भोग ,
हमारा भूखा पेट तो , मंदिर की दान पेटी भी नहीं ,,
जीवन का सारा बोझ , इन नन्हे कंधों पर लिए हैं ,
रद्दी ढोते है हम , पर कंधों पर किताब का बैग नही ,,
जिस जगह को हमने , अपने हाँथो से है साफ़ किया ,
वहाँ खेलने तक का भी , हमे अधिकार नहीं ,,
दिन सारा सड़को पे गुज़र जाता है ,
रात सोना तो है ,मगर चैन की नींद नही,,
कभी धिक्कार तो , तो कभी दया दिखाते हैं ,
नियम तो बन गए पर , बाल मजदूरी हटाता कोई नही ,,
सब कहते है बच्चे देश का , उज्जवल भविष्य है ,
हम जैसो का क्या ….. हमारा तो कोई भविष्य ही नहीं ,,
हर कमी से ज्यादा , पेट की भूख सताती है हमे ,
कभी खाली पेट सोये कभी एक निवाला भी मिला नही ,,
कुदरत ने हम सब को जैसा ही बनाया है, फिर भी बहुत अलग है हम ,
क्या गर्मी क्या सर्दी , हमारे लिए तो खुला आसमान है
,सर के ऊपर छत नहीं ,,