बचपन के दोस्त की किमत
जब जेंब में मेरे, एक भी टक़ा न था,
फिर भी दिल, दोस्तो के फूलो से भरा हुआ था।
आज जेंब में इतने पैसा, भर लाया,
पर बचपन के दोस्त की किमत, अदा न कर पाया॥
जो कभी बिना मोल ही, मेरी हाट में बिक जाया करते थे,
बिना बुलाये ही मिलने, मेरे घर आ जाया करते थे।
आज उसके तीन घंटे की किमत भी न चुका पाया,
लक्की, कृष्ण हो कर भी, सुदामा सा नजर आया॥
आपका अपना
लक्की सिंह चौहान
बनेड़ा(राजपुर)