बचपन के दिन
चल मुड चलें आज फिर उस गली की तरफ,
जहां कभी क्रिकेट का खेल हुए करता था,
चल मुड चले आज फिर उस गली की तरफ,
जहां आइस गोले वाले का शोर हुआ करता था।
चल चलें वहीं, और देखें,
क्या आज भी वो खेल होता है वहीं?
जहां तेज बल्ला घुमाकर गेंद चली जाती थी कहीं,
चल चलें आज उस गली,
और देखें, क्या हमारी बचपन की मेहबूबा,
अभी भी रहती है वहीं?
क्या अभी भी उस गली की जलेबियां मशहूर हैं या!
खोल ली है किसी ने नई दुकान वहीं?
आओ चलें और देखें..
लुक्का छुप्पी खेलते वक़्त,
हमारे छुपने के अड्डे अभी भी हैं या,
टूट गए हैं किसी का आंगन बनने से,
या टूट गई हैं वो आमो की टहनियां,
किसी का आशियां संवरने से।
जाना है मुझे वहां फिर से,
महसूस करना है वो बचपन…
जिनको जी के हम बड़े हुए..
नवरात्रि में चंदा मांगने,
सबसे पहले खड़े हुए..!
बितानी है वह रात..
फिर से गिनने है छत से तारे।
सो जाना है वहीं कहीं,
और सपने देखने है प्यारे।
फिर किसी बात की कोई परेशानी ना हो,
लूडो,चाय और चार यार साथ हों।
आज आ गया हूं वहीं,
जिसकी बात मैं कर रहा था,
जिस गली को देखने के लिए,
मेरा रोम रोम तड़प रहा था।
कुछ अलग था उन फिज़ाओं में,
वाह जलेबी की खुशबू कम,
मोमोज़ की चटनी की महक आ रही थी,
अब मैंगो बाइट की जगह,
बच्चियां मैलोडी लेकर आ रहीं थी।
चल पड़ा आगे..
तो सब बदल चुका था,
हमारे क्रिकेट का मैदान,
अब बिक चुका था।
चलते चलते आंखें गई उस खिड़की पर,
जहां रहती थी मेरी बचपन की मेहबूबा,
वहीं खड़ी थी वो,
फिर आज दिल उसकी आंखों में डूबा।
सब बदल गया था,
वो भी बदल गई थी,
बच्ची से अब वो बड़ी जो हो गई थी।
दिल दुखा उस गली को देखकर के मेरा,
अरे बचपन बीता था उसमे मेरा।
पर आज कोई तो है साथ,
शायद मेरी मेहबूबा और उसका हाथ।
हाथ पकड़ मेरा उसने मुझसे कहा,
आओ चलें वहां यादें रहती हैं जहां
और दिल दुखने का तो सवाल ही नहीं,
क्यूंकि..
लोग बदले हैं.. रिश्ते नहीं,
दुकानें बदली हैं.. ख्वाहिशें नहीं,
खेल बदले हैं.. सपने नहीं,
बस गली ही तो बदली है.. यादें नहीं, यादें नहीं।।