बचपन की याद बहुत आती है –आर के रस्तोगी
बचपन की याद बहुत आती है
मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है
जब हम आँख-मिचोनी खेलते थे
तुम आँखे बंद कर लेती थी
हम सब कही छिप जाते थे
तुम सबको ढूंढती रहती थी
जो पहले मिल जाता था
उसी को चोर बनाते थे
वो आँख-मिचोनी बहुत याद आती है
बचपन की याद ——
गर्मियों की छुट्टियों में ताश खेलते थे
नई ताश की गड्डी हम दोनों लाते थे
हर बार उनको गिनते रहते थे
कभी इक्यावन हो जाते थे
कभी बावन पूरे हो जाते थे
कभी तीन दो पांच खेलते थे
कभी कोर्ट पीस खेलते थे
कभी तुरफ बोलते थे
कभी तुरफ बुलवाते थे
इसी तरह गर्मियों की छुट्टी बिताते थे
वह गर्मियां बहुत याद आती है
बचपन की याद—-
कभी तुम बादशाह चुरा लेती थी
कभी मै बेगम को चुरा लेता था
इसी बात पर झगड़ा कर लेते थे
बाद में एक दुजे को मना लेते थे
आज न ताश के पत्ते रहे
न वह पुराना बचपन रहा
न वह आँख मिचोनी रही
केवल जीवन में भागा दौड़ी रही
बस तुम्हारे प्यार की खश्बू आती है
बचपन की याद —–
आर के रस्तोगी