बचपन की यादें -कविता
घर के, कच्चे आंगन में,
मिट्टी की, खुशबू आना ।
बचपन में ,तख्ती लेकर,
मुल्तानी का, लेप चढ़ाना ।।
नीला- कुर्ता ,सफेद- पजामा,
था, यह अपना आना-बाना ।
छोटा सा ,कायदा ले जाते,
नहीं था, हमको बोझ उठाना ।।
बच्चों संग हम सब दिन खेले
टी वी का था, नहीं जमाना ।
आंगन में ,पढ़ते थे हम सब ।
दीया था अपना, एक पुराना।।
विद्यालय ,सौ कदम दूर था
ना स्कुटर, ना कार चलाना।
थोड़े से पैसे थे, जेब में
गोलगप्पे थे उनसे, खाना ।।
बस्ता रखते थे ,एक कोने
था ना हमको, टयूशन जाना।
दिन भर खेलते, घर से बाहर
ना पोगो था ,ना गेम चलाना ।।
दूध- दही, घर में होता था
ना था बर्गर ,पीजा खाना
रबड़ी ,खिचड़ी ,खाते थे हम
जंक फूड था ,नहीं पहचाना ।।
आंगन धूप, रहती थी दिनभर
बारिश में था, खूब नहाना ।
ढूढ़ते थे जब, मात-पिता तो
दोस्त के घर में ,था छुप जाना ।।
खेत में जाते, मात-पिता संग,
था ना ,पार्क में जाना ।
नंगे पांव ,हम दौड़ लगाते
पीठ पे, बैठ के घर आना ।।
दो महीनों की, छुट्टियों में हमको
मामा के, घर था जाना ।
थैले में ,ले जाकर गेंहू
दुकान से था ,खरबूजा खाना ।।
कंचे, खेलते थे हम
बैट नहीं था, हमें मंगवाना ।
जन्मदिन था ,याद नहीं
केक नहीं था, हमको कटवाना ।।
खटिया रखकर, छत पर सोते
ना था हमको ,ए सी चलाना।
इको फ्रेंडली रंग था , अपना
ना पाउडर ,ना क्रीम मंगवाना ।।
दादी की ,कहानी सुनते थे
आठ बजे था ,सो जाना ।
ताजा हो गई, वो सभी यादें
जब याद आया, वो गुजरा जमाना।।
रचनाकार अरविंद भारद्वाज