बचपन की बरसात
बचपन की बरसात
याद है हमको वो राते,
जब आती थी बचपन की बरसाते,
बचपन मे हम बच्चे उछलते मटकते,
उस गीले मेंढक से कहते ,
रे मेंढक, तुम क्यू यहा भटकते,
याद है हमको वो राते,
जब आती थी बचपन की बरसाते।
जब आती थी वो काले घन से वो आहटे,
तब हम सब हड़बड़ा कर घर मे बैठ जाते,
जैसे ही बिजली की चमक को देखते,
अपने कदमो को पीछे की और धकेलते,
याद है हमको वो राते,
जब आती थी बचपन की बरसाते।
कागज की नाव बनाकर उसे नालियों मे धकेलते,
फिर उस कागज की नाव को बहते हुए निहारते,
दोस्तों के साथ मिलकर जब बरसात मे भीग जाते ,
इस कारण दादी की डाट भी खाते।
याद है हमको वो राते,
जब आती थी बचपन की बरसाते।
जब कीचड़भरी सड़कों पर साइकिल हम चलाते,
पीछे से कीचड़ से लटपट हो जाते ,
पानी के गड्ढ़ो मे जब पत्तों को तैराते,
तब जीवन के असली सुख को हम निहारते,
याद है हमको वो राते,
जब आती थी बचपन की बरसाते।
आज करकर याद उन बरसातों की बातें
कवि भवेश भी कुछ यूं हर्षाते,
जैसे बारिश के वक्त मोर नृत्य कर जाते।
याद है हमको वो राते,
जब आती थी बचपन की बरसाते।
– भवेश गुप्ता