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8 Jul 2021 · 1 min read

बचपन की चिट्ठी

आज मुझे इक ख़त आया
मै तनहा जब बैठा था
तभी डाकिया ख़त लाया
आज मुझे इक ख़त आया

ख़त देखा तो सिहर गया
चेहरा मेरा निखर गया
उसकी पहली लाइन थी
तुझे यार मै बिसर गया
मै तेरा बचपन भाया
आज मुझे इक ख़त आया

खत में लिक्खा था उसने
तुझको बदल दिया किसने
तू तो भोला भाला था
अड़ियल बना दिया किसने
कैसी जग की है माया
आज मुझे इक ख़त आया

भूल गया क्या मुस्काना
बिन चप्पल आना जाना
पेड़ों के ऊपर चढ़कर
आम तोड़कर इतराना
वो सब कहाँ छोड़ आया
आज मुझे इक ख़त आया

वो लपचू डंडा का खेल
सबसे रहता था तब मेल
कोई छोटा बड़ा नहीं था
अपना घर लगती थी जेल
पढ़ लिख कर मुझे छोड़ आया
आज मुझे इक ख़त आया

आ फिर से अब वहीं चलें
अपने उस घर लौट चलें
वही दोस्त फिर से ढूंढे
और उन सबके गले मिलें
यहाँ कहाँ मन भरमाया
आज मुझे इक ख़त आया

अशोक मिश्र

Language: Hindi
1 Like · 741 Views

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