बचपन की चिट्ठी
आज मुझे इक ख़त आया
मै तनहा जब बैठा था
तभी डाकिया ख़त लाया
आज मुझे इक ख़त आया
ख़त देखा तो सिहर गया
चेहरा मेरा निखर गया
उसकी पहली लाइन थी
तुझे यार मै बिसर गया
मै तेरा बचपन भाया
आज मुझे इक ख़त आया
खत में लिक्खा था उसने
तुझको बदल दिया किसने
तू तो भोला भाला था
अड़ियल बना दिया किसने
कैसी जग की है माया
आज मुझे इक ख़त आया
भूल गया क्या मुस्काना
बिन चप्पल आना जाना
पेड़ों के ऊपर चढ़कर
आम तोड़कर इतराना
वो सब कहाँ छोड़ आया
आज मुझे इक ख़त आया
वो लपचू डंडा का खेल
सबसे रहता था तब मेल
कोई छोटा बड़ा नहीं था
अपना घर लगती थी जेल
पढ़ लिख कर मुझे छोड़ आया
आज मुझे इक ख़त आया
आ फिर से अब वहीं चलें
अपने उस घर लौट चलें
वही दोस्त फिर से ढूंढे
और उन सबके गले मिलें
यहाँ कहाँ मन भरमाया
आज मुझे इक ख़त आया
अशोक मिश्र