बचपन की चाह….
आज मैं मित्रो से मिलकर अनजानी मे ईश्वर से खफा हूँ।,
पता नहीं कब से अपने जहन मे एक ही बात दबाये रखा हूँ।,
आज मैं उस ईश्वर से कुछ पाने की चाह रखता हूँ।,
वो कुछ ओर कुछ नहीं मैं मेरे ओर मेरे मित्रो के बचपन की चाह रखता हूँ।
वो विधालय की बहुत सी धुधंली यादें और दोस्तों के साथ बीतायी कुछ मुलाकाते आज भी याद आती हैं।,
अब जाना की क्यों मेरी आखों समुद्र की गहराई में डूब जाती हैं।,
मैं उन पलों की वापस संजोये रखने की चाह रखता हूँ।,
वो कुछ ओर कुछ नहीं मैं मेरे ओर मेरे मित्रों के बचपन की चाह रखता हूँ।
वो विधालय कुछ शरारती यादें मैं जब भी याद करता हूँ।,
उस पल मैं अपनें आखों को यादों के भंवर सागर में भीगा लेता हूँ।,
मैं उन यादों की एक बार छवि मात्र पाने की चाह रखता हूँ।,
वो कुछ ओर कुछ नहीं मैं मेरे ओर मेरे मित्रो के बचपन की चाह रखता हूँ।
आज मित्रों से मिला तो बीती हुई यादें ताजा हो गयी,
कितुं उस जुदाई के पल को याद करते ही मेरी आखें
नम हो गयी,
अब तो सिर्फ मेरे जहन मे ये ही बात आती हैं कि मुझे तो मेरे शरारती मित्रो की याद आती है,
अब तो मैं उस बचपन पर कुछ भी अनमोल न्योछावर कर सकता हूँ।
वो कुछ और कुछ नहीं मैं मेरे ओर मेरे मित्रो के बचपन की चाह रखता हूँ।