बचपन का प्रेम
प्यार किया इजहार ना किया,
देखा पर दीदार ना किया।
आज मगर जब कहना चाहा,
सुनैना तक स्वीकार ना किया॥
~~~~~~~ १ ~~~~~~~
मुझे याद है पहले तुम भी,
प्यार हमेशा करते थे।
तरह-तरह की खोज बहाने,
हमसे बातें करते थे॥
पता नहीं क्यों भूल गए तुम,
बचपन का वह निश्छल प्रेम।
जाने क्यों अनजान बने हैं,
अपना सा व्यवहार न किया॥
आज मगर जब ••••••••॥१॥
~~~~~~~ २ ~~~~~~~
माना गलती मेरी ही थी,
खुद को तुम्हारे योग्य माना।
चाहत दिल में छुपा रखी थी,
पर चाहत का मोल न जाना॥
मैं भी नजर बचाकर तुमको,
छुपकर देखा करता था।
पर जब तुम नजदीक थे आते,
किस्मत पर ऐतबार न किया॥
आज मगर जब ••••••••॥२॥
~~~~~~~ ३ ~~~~~~~
वैसे तो तब बचपन ही था,
पर चाहत में सच्चाई थी।
मैं तुमको खुश रख पाऊंगा,
यह शंका मन में छाई थी॥
इसलिए कलेजे पर पत्थर रख,
अपनाई जुदाई थी।
‘अंकुर’ अब जीवन न कटेगा,
जो तुमने गुलजार न किया॥
आज मगर जब •••••••••॥३॥
-✍️ निरंजन कुमार तिलक ‘अंकुर’
छतरपुर मध्यप्रदेश 9752606136