बचपन का ज़माना
हर ओर सिर्फ खुशियोँ का ठिकाना था,
कितना प्यारा वो बचपन का ज़माना था,
मस्त मौला हो झूमते गाते थे,
जो दिल में आता वो कर जाते थे,
ऐसी शरारतों में बीतता था सारा दिन,
शाम को पापा ढूँढ – ढूँढकर घर ले आते थे,
जो मन कर जाए वो खाते थे,
घरवालो को खूब नाच- नचाते थे,
कोई कर दे शिकायत जो हमारी मस्तियों की,
उस बंदे की खूब बैंड बजाते थे,
खेल- खेल मे चोट जो लगती,
मार की डर से चुप रह जाते थे,
दो पल में दर्द भूल के सारा,
फ़िर मैदान में लौट आते थे,
ना कोई चिंता थी ना कोई फिकर,
ना ही भविष्य बिगड़ने का डर,
बड़े क्या हुए चिंताओं से घिरने लगे,
हर तरफ़ है सिर्फ मुसीबतों का कहर,
थका रही है ज़िंदगी इम्तिहान ले लेकर,
काटों से भरी है हर एक डगर,
अब तो सिर्फ बचपन की मीठी – मीठी यादें है
वो मस्ती भरी प्यारी – प्यारी बातें है,
कभी जो बैठे गहरी सोच में,
एक ही बात कह पाते है,
सारी खुशियोँ पर कब्ज़ा हमारा था,
वो बचपन भी कितना प्यारा था।
✍️वैष्णवी गुप्ता(Vaishu)
कौशांबी