“बचपन का खजाना”
वक्त का ए लुटेरा दगा दे गया ,
जाने वो कैसी सजा दे गया ,
जवानी का लालच दिखाकर हमें,
“बचपन का खजाना “चुरा ले गया ।
वो मिट्टी के घरौदे ,
वो कागज की नाव ,
वो रबड़ की गुड़िया ,
वो पीपल के छाँव ।
वह छत की मुंडेरो पर ,
चिड़ियों का डेरा ,
जिसे देखकर होता था सवेरा ।
परियों की कहानी कहां ले गया,
जवानी का लालच दिखाकर हमें,
” बचपन का खजाना “चुरा ले गया ।
वो मेलो की रौनक ,
ओ बांसुरी की धुन ,
वो चूरन की पुड़िया ,
वो बारिश की बूंद ।
वो मदारी का खेल ,
वो तालियो का बजाना ,
ऊंचे गगन में पतंगे उड़ाना ।
बचपन के गुब्बारे कहां ले गया ,
जवानी का लालच दिखाकर हमें,
” बचपन का खजाना “चुरा ले गया ।
वो झुंड बनाकर स्कूलों में जाना,
ऊंचे स्वर में पहाड़ा सुनाना ,
वो गुरु जी की डाँट ,
वो दादी की बात ।
कितना कितना अच्छा था,
बचपन का जमाना ,
मिट्टी लगाकर नदी में नहाना ,
वो गिल्ली .डंडो का खेल कहां ले गया ।
जवानी का लालच दिखाकर हमें,
“बचपन का खजाना” चुरा ले गया ।
वो मिट्टी की गाड़ी ,
वो कागज के पैसे ,
वो कांच की चूड़ी ,
वो फूलों के गहने ।
खुशियों के थे कितने बहाने ,
खेल .खेल में जाते थे कमाने ,
वह गांव की दोपहरी कहां ले गया ,
जवानी का लालच दिखाकर हमें ,
“बचपन का खजाना” चुरा ले गया ।
**** सुनील पासवान कुशीनगर****