बचपन अब मेरा न था
जब आंख मेरी खुली ,
फूल बनी नन्ही कली ,
जग को देख रोया था,
उठा वर्षों से सोया था,
मुझे देख सब हंस रहे थे,
गलियों में बाजे बज रहे थे,
सबका प्यार आ रहा था नजर,
आंखों में काजल था लगे ना पराई नजर,
गिर गिर कर चलना सीखा,
हर इच्छा को पूरे होते देखा,
माता पिता की गोद यही संसार था ,
उनके बिना यह जग बेकार था,
समय चलता गया ,
रवि बढ़ता गया ,
अब दिन गया ढल ,
अंधेरे में बचे दो पल,
पहले था में सबके अंदर,
आज हूँ सबसे बाहर ,
जो मेरा था मेरा ना था,
बचपन अब मेरा ना था,
मेरी बगिया कि वह महकते फूल ,
चढ़े ईश के शीश बचे रहे अब शूल,
नहीं किसी को अब मेरी परवाह,
कौन बोलेगा मेरी कविता पर वाह,
चलता रहा बिना थके,
बढ़ता रहा बिना रुके,
अब होने को हैं आंखें बंद,
हंस रहा हूं आज मंद मंद ,
अब सब रो रहे थे ,
गलियों वही बाजे बज रहे थे,
सबका प्यार आ रहा था नजर ,
फैल रही थी खबर बन कर लहर,
यही जीवन का क्रम है, मोह माया बस भ्रम है, नतमस्तक उस ब्रह्म को, जो कहलाता परब्रह्म है,
।।जेपीएल।।।