बगुले ही बगुले बैठे हैं, भैया हंसों के वेश में
बगुले ही बगुले बैठे हैं, भैया हंसों के वेश में
कैसे मीन बचे बेचारी,गंदे इस परिवेश में
कहते कुछ और करते कुछ हैं, कोई धरम ईमान नहीं
अंदर कुछ और बाहर कुछ है,ये साधारण इंसान नहीं
राजनीति के कीड़ों की, होती कोई जवान नहीं
वेमतलब की वयानबाजी में,इनका कोई जवाब नहीं
वोट के खातिर राजनीति, करते हैं वे देश में
बगुले ही बगुले बैठे हैं, भैया हंसों के वेश में
मुख पर है जनता की सेवा, करते सेवा का करम नहीं
खाते हैं पैसे की मेवा, इन्हें जरा भी शरम नहीं
मरते दम तक पद पर रहते, मरने पर अवशेष में
है पूरा तालाब ही गंदा राजनीति का देश में
बगुले ही बगुले बैठे हैं, भैया हंसों के वेश में
सुरेश कुमार चतुर्वेदी