बगिया की फुलवारी में दो फूल ..प्रतिकात्मक प्रसंग !
भाग दो…………प्रतीकात्मक प्रस्तुति प्रसंग !……………………..
फाँस लिया अपने जाल में,रखा यह प्रस्ताव,
जीत गए जो तुम अभी,मैं जाउंगा बनवास,
जो हार गए जो तुम अब,जाओगे बनवास!
करना पड़ा स्वीकार इसे,मान बडों का आदेश,
लगा दिया तब दाँव पर,अपना सब परिवेश!
हुआ खेल यह शुरू,किया वार-प्रतिवार,
प्रस्तावक की चाहत थी,जीत मिले हर-हाल!
इसीलिए तो चली थी,उन्होंने यह कूटनीतिक चाल!
हो गए कामयाब,जो उन्होंने चाहा था,
दे दिया उनको बनवास,जो दाँव पर उन्हें बताया था!
चले गए वह निश्छल भाव से,यह उन्होंने दर्शाया था,
पर दिलो दिमाग में,यह अन्तर-द्वंद्व छाया था,
थी उन्हें ग्लानी इससे,उन्होंने उनके घर की लाज को हाथ लगाया था,
और इसके प्रतिकार के लिए इन्होंने,यह प्रण मन में उठाया था!
इसके लिए युद्ध अनिवार्य हो गया,यह इन्होंने जतलाया था!
माली की निष्ठा अपनी बगिया की ओर है,यह उन्होंने बताया था!
फूलों को सवांरने-और उन्हें महकाने वालों ने भी यही दर्शाया था!
भवरें का तो भाव उन्हीं में रहना,कषैले फूलों को तो यहीं करना था!
एक ओर सत्य का आधार,तो दूसरी ओर थी षड्यंत्र रचना !
षड्यंत्र का कारण इन्हें पहचान ,फिर से इसकी पुनरावृत्ति करना!इनका प्रयास समय की तरह अपने वचन पर रहना !
इसका निर्वाह भी इन्होंने कर लिया! किसी तरह अपनी पहचान को छुपा कर पुरा कर दिया! कितने ही संकटो का सामना किया!
अब अपने वैभव को पाने का निर्णय लिया !
यह इतना आसान नहीं होना था,प्रतिघाती को प्रतिघात करना था! इन्हें इसका आभास दिख रहा था! जिसके लिए प्रत्युत्तर अपेक्षित था! अब यही एक मार्ग शेष बचा रह गया था!
किन्तु बगिया के श्रेष्ठ के मन में एक विचार आया,
उसने अतिंम विकल्प से पूर्व,इसको आजमाया !
अपना एक दूत को भेज कर,सुलह से समाधान कहलाया !
दूत ने भी अपना दायित्व निभाते हुए,यह प्रस्ताव बताया !
किन्तु अब तो इस बगिया को वह अपना ही मान लिए !
इसीलिए वह उसे छोड़कर जाने को तैयार नहीं हुए !
दूत ने बहुत समझाया,थोड़ा ही दे दो यह भी सुझाया ,
किन्तु हर बार हठ से अपनी ,मनवाने की आदत से यह सब नहीं सुहाया ! वह करने लगा प्रतिकार,और कर गया दुर्व्यवहार !
दूत ने अब जान लिया,मंद बुद्धि का अंन्त निकट है मान लिया!
और कर दी गई घोषणा,अब युद्ध अनिवार्य है,होकर रहेगा,
जो जितेगा अब यहाँ पर,!वही राज करेगा अब इस बगिया पर !
शेष भाग ………………………तृतीय प्रस्तुति के प्रसंग में –