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23 Jul 2021 · 1 min read

बगावत

मेरा दिल मुझसे ही बगावत कर बैठा,
बड़ा नादान निकला ये क्या कर बैठा।

लाख समझाया के छोड़ भी दे ये ज़िद ,
हरजाई क्यों वादा खिलाफी कर बैठा।

यह इश्क एक आग का दरिया होता है ,
ना मालूम क्यों अपने हाथ जला बैठा।

काश! ना उलझाता कांटों में ये दामन ,
शदाई जिस्म भी लहूलुहान कर बैठा।

कहा था मैने उसका तसव्वुर भी ना कर ,
फिर भी दीवाना ख्वाबों में सजा बैठा ।

दिल तो आखिर दिल है कहां मानता है ,
जिस पर फना होना था उसे हो बैठा ।

माना मुहोबत दुनिया का हसीं जज्बा है ,
मगर दोनो ओर से निभा तभी ठीक बैठा ।

एकतरफा इश्क जहां में नाकाम ही हुआ ,
इस राह में जो भी चला ठोकर खा बैठा।

“अनु “समझाए दिल को न कर नादानियां,
तेरे तरह हर आशिक जीस्त तबाह कर बैठा ।

6 Likes · 9 Comments · 596 Views
Books from ओनिका सेतिया 'अनु '
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