बगावत का बिगुल
मूर्दों के इस देश में हम
क्यों न आग लगा दें अब?
इस सड़े हुए समाज को हम
क्यों न कहीं दफना दें अब?
पता नहीं तुम किस तरह
बर्दाश्त कर रहे हो इसे?
इस ज़ुल्मत की बुनियाद हम
क्यों न उठके हिला दें अब?
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