बख्ता नहीं(गज़ल)
सरकार को खलता नहीं,
गर हाथ में बस्ता नहीं।
था सामने डटकर खडा़,
बच्चा निडर टसका नहीं।
है क्या वजह क्यूँ ना पढा?
क्यूँ जीत का चस्का नहीं।
पूछा उसे जब डाँट कर,
वो रो दिया रस्ता नहीं।
है छत मिरी ये आसमाँ,
घर बार का नक्शा नहीं।
सपने कहाँ लेता बड़े?
बिस्तर नहीं बख्ता नहीं।
ये बात भी बतला गया,
राशन कहीं सस्ता नहीं।
भ्रष्ट यहाँ नर – नार है,
ये देश तो खस्ता नहीं।
क्या ये खबर तुमने सुनी,
अखबार में चस्पा नहीं।
हर रोज ही फटके लगे,
है आम ये मसला नहीं।
-भारत सैनी ‘गहलोत’
बख्ता(fate)-किस्मत
चस्पा-छपा हुआ