बंधु चिंता चिता समान
बंधु चिंता चिता समान
चिता जलाती मुर्दे को, चिंता जिंदा इंसान
रे बंधु चिंता चिता समान
तहस-नहस जीवन को करती
बुद्धि और विवेक को हरती
घुलता घुन के समान,
रे बंधु चिंता चिता समान
आत्मा शरीर को दुख पहुंचाती,
हताशा और निराशा बढ़ाती
देती तनाव थकान, रे बंधु चिंता चिता समान
जो होना है हो जाएगा, व्यर्थ ना घुल क्या कर पाएगा
छोड़ो सारी चिंताएं,मन चिंतन करो महान,
रे बंधु चिंता चिता समान
चिंता नहीं उपाय दुखों का, चिंता दुख और बढ़ाती है
समस्याओं की मूल तलाशो, लो भगवान का नाम
रे बंधु चिंता चिता समान
सुरेश कुमार चतुर्वेदी