बंधी मुठ्ठी लाख की : शिक्षक विशेषांक
5 सितंबर आने वाला है इस 5 सितंबर पर मैं अपने सभी शिक्षकों को प्रणाम करते हुए आज अपनी संस्मरण माला में आदरणीय स्वर्गीय श्री हरिश्चंद्र शर्मा का उल्लेख करने जा रही हूं।
कहा जाता है “कॉलेज टाइम इस द गोल्डन टाइम ऑफ़ द लाइफ”। 18 वर्ष की आयु से लेकर के लगभग 25 वर्ष तक के बीच समय अन्तराल में मनुष्य सर्वाधिक सीखता है| यह वही समय है जब इंसान अपने जीवन में किसी को आदर्श मान लेता है । वैसे तो ईश्वर की अपार कृपा से मेरे जीवन में जो भी मिला उसने मुझे कोई ना कोई शिक्षा अवश्य दी । सत्य कहूं तो समय ने भी मुझे शिक्षित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा। मेरे लिए अवधूत गुरु की अवधारणा सत्य ही है।
जिला एटा के जवाहरलाल नेहरू स्नातकोत्तर महाविद्यालय में मैं स्नातक द्वितीय वर्ष की छात्रा थी। उस समय स्नातक स्तर पर आगरा विश्वविद्यालय में चार विषय देने का प्रावधान था। मेरे चार विषय थे: अंग्रेजी साहित्य, अंग्रेजी भाषा, अर्थशास्त्र और भूगोल।
अर्थशास्त्र मेरा प्रिय विषय था भूगोल उससे जुड़ा हुआ ही विषय था वह भी मुझे बहुत प्रिय था। साहित्य की मैं आरंभ काल से ही प्रशंसक हूं इसलिए अंग्रेजी साहित्य लिया, अंग्रेजी सामान्य मुझे लगा मुझे लेना चाहिए विषयों का चयन मैंने स्वयं ही कर लिया था , मैं अलीगंज से एटा रोज का आना जाना लगभग 52 किमी. कई बार क्लास में लेट या कई बार छूट भी जाती थी | रिजवी सर अलीगढ़ से अप डाउन करते थे तो उनका भी मेरे जैसा ही हाल था कुल मिलाकर मुझे ऐसा लगने लगा कि क्लास में तो इतना समझ आ नहीं रहा है… कई बार सर नहीं आते हैं कई बार कंडोलेंस जाती है। कुछ न कुछ होता रहता था। जब हमने अन्य छात्राओं से बातचीत की को पता चला अंग्रेजी विषय में पारंगत होने के लिए टयूशन लेनी ही होगी।
अंग्रेजी विभाग में उस समय तीन ही प्रवक्ता थे: डॉक्टर एच .सी .शर्मा , डॉक्टर रिजवी जो अलीगढ़ से आते थे, और डॉक्टर गहलोत जो उस समय अरुणा नगर में रहते थे। मैं छोटे से तहसील की रहने वाली मेरी सोच भी बहुत विकसित नहीं थी अरुणा नगर बहुत दूर लगा, रिजवी सर का कोई मतलब नहीं अब बचे शर्मा सर तो एक दिन हमने लाइब्रेरी हॉल के आगे शर्मा जी से बात करने का प्रयास किया….
सर मैं आपसे ट्यूशन पढ़ना चाहती हूं
सर ने कहा …..बेटा मैं विद्यालय परिसर में इस तरह की चर्चा पसंद नहीं करता हूं
घर कहां है आपका…… मैंने तपाक से पूछ लिया
सिविल लाइन कॉलोनी आई.पी.एस. के सरकारी निवास के साथ ही और अब उन्होंने मुझसे पूछा
नाम क्या है तुम्हारा
जी प्रतिभा मैने शालीनता से उत्तर दिया
उन्होंने पूछा…. कहां की रहने वाली हो
मैंने कहा….अलीगंज
अब उनके शब्द सुनिए जो अनुकरणीय है और शायद सभी शिक्षकों के लिए प्रत्येक काल में अनुकरणीय ही रहेंगे उनके शब्द थे…..
उन्होंने थोडा कड़क होते हुए पूछा…..
तुम पढ़ना चाहती हो
मैंने कहा जी
उन्होंने कहा …..कैसे पढ़ोगे
मैंने कहा ……जी मेरी एक रिश्तेदार हैं यहां पर कृष्णा टाकीज के साथ गली में रहते हैं मैं वहीं रहूंगी .(उन दिनों पी जी का रिवाज था नहीं और अकेले लड़कियों का कमरा लेकर रहना ना बाबा कोई सोचे भी न …………तो और कोई विकल्प नहीं था वैसे किराये पर रहने का प्रयास भी किया जो असफल ही रहा |)
उन्होंने कहा……ठीक है आज से आ जाओ
इतना कह कर शर्मा जी आगे बढ़ गए मैं पीछे से फिर दौड़ कर आई और उनके आगे फिर से खड़ी हो गई
उन्होंने कहा….. कह तो दिया आज सायं 4 बजे वाले बैच में आ जाना और साहित्य वालों को में आधा घंटा एक्स्ट्रा लेता हूं अब जाओ
मैंने कहा……सर वो फीस
शब्द जो मेरे पटल पर अंकित हुए….
यदि तुम पढ़ना चाहती हो तो मुझसे कभी भी फीस की बात नहीं करनी। आप जो भी मुट्ठी बंद करके दे दोगी मैं मुट्ठी खोलकर देखूंगा नहीं और मुझे फीस नहीं पूछना आपको पढ़ना है और मैंने पढ़ाना है । यह हमारा उद्देश्य होना चाहिए । इतनी दूर से आती हो पढ़ने के लिए आती हो पढ़ लिखकर कुछ बन जाओगी वह मेरे लिए सबसे बड़ी फीस होगी!
मैं उनके शब्द सुनकर आश्चर्यजनक स्थिति में थी मेरे साथ अलीगंज की एक और लड़की थी गीता वर्मा उसने मुझसे कहा प्रतिभा अगर मुझे ऐसे सर मिलते तो मैं भी इंग्लिश लेती और सच यह है कि शर्मा जी की ही पढ़ाई ही थोड़ी बहुत में समझ में आती थी।
सर की कुछ बातें बड़ी पसंद है सर की हाइट लगभग 6:30 फिट, रंग गोरा और बहुत हैंडसम लगते थे। रिटायर होने वाले थे लेकिन उनके आगे किसी की कुछ कहने की हिम्मत न होती थी। उनका स्वभाव काफी लचीला, वाणी एकदम मिस्री मीठी, उनकी बातों का मेरे हृदय पर बड़ा गहरा असर पड़ा।
यदि आप प्रतिलिपि पर मेरी संस्मरण माला पढेंगे तो आपको ज्ञात होगा कि आपने पढ़ा होगा, मैं अपने एक रिश्तेदार मामा जी यहां रहती थी । मैने घर जाकर मेरी ही तरह दीदी को बताया…..मैने शर्मा जी से ट्यूशन की बात कर ली है ।
उसी गली में मेरे साथ की जैन लड़की भी रहती थी, वहां दो दिगम्बर जैन मंदिर थे और वो लड़की हमारे साथ ही पढ़ती भी थी उनके घर में भी एक जैन मंदिर था जिनकी आर्थिक स्थिति चिंताजनक ही थी हालांकि बाद में मैंने पी.एच.डी. उनके घर में ही रहकर की यह फिर कभी बताएंगे तो जब मैंने उसको कहा कि गीता शाम को मैंने भी जाना है | वो बड़ी खुश हुई हम लोगों ने पीछे गली से शॉर्टकट रास्ता निकाला रास्ते में कब्रिस्तान पढ़ता था जो आज भी वहां पर स्थित है। लीड बैंक के पीछे से रोड जाता जो सीधे सिविल लाइंस में निकलता है।
ट्यूशन का पहला दिन सर ने मुझे देखा फिर अपनी पत्नी को बुलाया…. सच तो ये है कि उनकी पत्नी भी ऐश्वर्य राय से कम नहीं थी….. मैंने उनको देखा और मैं तो देखती रही
उन्होंने अपनी पत्नी से कहा …यह प्रतिभा है अलीगंज से आई है यहां पढ़ने के लिए उनकी पत्नी ने कहा अलीगंज तो बहुत दूर है
सर ने मुझसे पूछा …..कितने किलोमीटर है
मैंने कहा 52 किमी . लगभग
उन्होंने फिर पूछा…..अलीगंज में कहां रहती तो हमने बता दिया शिशु मंदिर के पास
उन्होंने फिर से पूछ लिया
बस स्टैंड कितनी दूर है मैंने कहा यही कोई होगा एक यद् डेढ़ किमी.
तब उन्होंने समझाया……देखो 55 किलोमीटर का सफर….. यह लड़की शिक्षा प्राप्त करने के लिए करती है तो मैं तुम सब से यही कहूंगा की शिक्षा कहीं से भी कैसे भी मिले प्राप्त करनी चाहिए यह जीवन की सुगमता के लिए अनिवार्य है।
पूरे बैच में मेरा अभिनंदन किया गया आंटी सफ़ेद दूध वाली वर्फी लेकर आई और सबको बांटी । वह दिन भी आया जिस दिन हमने फीस देनी थी उस समय सर की फीस ₹ 500 प्रति सब्जेक्ट हुआ करती थी और पहली बार मैंने ₹ 500 रुपए दिए।
मैंने सर से कहा….. सर देख लिजिए
सर ने कहा…… अगर पढ़ना चहती हो तो जाओ मेहनत से पढ़ो नहीं तो जो दिए वापिस ले जाओ।
सर ने फिर कहा…. यह सब बताने की आवश्यकता नहीं है याद रखो ” बंधी मुठ्ठी लाख की खुली मुठ्ठी खाक की” मैंने कभी किसी बच्चे से पैसे मांगे ही नहीं है । हों तो दे दो नहीं है तो मैं कभी किसी से नहीं कहता मेरा काम केवल पढ़ाना है मैं पैसों के लिए नहीं पढ़ाता हूं मैं पढ़ाने के लिए पढ़ाता हूं। पैसा मुझे सरकार बहुत दे देती है दोनों बच्चे मेरे सेटल्ड हैं।
आज तक मुझे नहीं याद कभी उन्होंने कभी खोल कर देखा और मैं उनके निर्णय को आजमाने के लिए कभी उनको 300 कभी 400 कभी 500 यहां तक 150 और 200 रुपए भी दिए लेकिन उन्होंने सचमुच कभी देखा ही नहीं।तक मैं उनको आज भी श्रद्धा से नमन करती हूं ऐसा कोई शिक्षक दिवस नहीं गया होगा जब उनको याद नहीं किया। हमारे फाइनल करने के बाद वह रिटायर हो गए थे ।
हम उनसे मिलते रहे लेकिन एम.ए.फाइनल करने के बाद जब हम वहां गए तो वह वहां से शिफ्ट कर चुके थे। हमने बहुत कोशिश की तो हमें पता चला कि सर इस दुनिया को छोड़कर जा चुके हैं। सर बहुत बुजुर्ग थे उन्होंने अपने समय में लव मैरिज की उनका एक बेटा था बेटी ने फाइन आर्ट में शायद कुछ किया था मुझे पता नहीं। मैं उनकी की पत्नी को भी सादर नमन करती हूँ ।
मैं भाग्यशाली हूं स्नातक स्तर पर भी मुझे इतने महान शिक्षक मिले।