” बंधन सं मुक्त करू “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
================
बड्ड यत्न सं हम
कल्पनाक पुष्प
एकत्रित करि
रंग- विरंगक
फूल सं कविताक
माला गुथलहूँ !
परिमलक परिधान
देल रंग -रूप
श्रृंगार कयल
अप्पन हृदयक
उद्गार व्यक्त केलहुं !!
भाव -भंगिमा शब्द
अलंकार प्रस्फुटित
सहज भ जाइत अछि !
हम जेहन आकृति
देबाक यत्न करैत छी
ताहि सं भव्य आर
बनि जाइत अछि !!
बंधन नहि आशीष
दिय नहि त सुमन
मौला जाइत !
सुगंध ,रूप ,चमकैत
स्वरुप नहि कहब
कतो हरा जाइत !!
=============
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका