बंद मुट्ठियों को खुलने तो दो…!
बंद मुट्ठियों को खुलने तो दो…!
(बाल दिवस के अवसर पर बच्चों को समर्पित मेरी यह रचना)
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बंद मुट्ठियों को खुलने तो दो
फूलों सा खिलने तो दो
हवाओं सा उड़ने तो दो
इन नन्हें नाज़ुक हाथों को
चाँद-सितारे छूने तो दो
कोशिशों से ये अपना सूरज
खुद उगा लेंगे
मुट्ठियों के खुलते ही
ये नन्हें-मासूम
अपनी पहेलियों को
खुद-बखुद सुलझा लेंगे
चंद किताबों को पढ़कर
ये भी इतिहास बना देंगे
—कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
★स्वरचित रचना
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