बंद पन्नों का सफर
अब भी महकता है बंद पन्नों में वह सूखा गुलाब…….।
अब भी तेरी यादों को इत्र सा महकाता है सनम
जो तुमने दिया था कभी हमको वो सुर्ख गुलाब
हां,अब भी महकता है हररोज बंद पन्नों में वह सूखा गुलाब…
अक्सर तेरी यादों के चिरागों के उजाले में
पलटने लगती हूँ मैं उस किताब के पन्ने
रखा था जिसमे कभी मैंने वो सुर्ख गुलाब ।
छुआ था तूने जिस गुलाब को अपने लबों से कभी
हुआ था तेरे ही रुखसार को छू कर वो सुर्ख गुलाब ।
तुम मुस्कुराए थे,, बहार बनके किया तुमने मुझे गुलज़ार।
नीलम शर्मा