बंद पंछी
2122 2122 21222
पिंजरे में बंद पंछी सा,तड़पते हम ।
पंख हैं घायल बदन पर चोट सहते हम।
क्या कहूँ किसको बताऊँ कौन है अपना-
है बने कैदी मगर अब मौन रहते हम।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली
2122 2122 21222
पिंजरे में बंद पंछी सा,तड़पते हम ।
पंख हैं घायल बदन पर चोट सहते हम।
क्या कहूँ किसको बताऊँ कौन है अपना-
है बने कैदी मगर अब मौन रहते हम।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली