बंदी जीवन भी क्या जीवन है
बंदी जीवन भी क्या जीवन
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बंदी जीवन भी क्या जीवन है
जहाँ आजादी का वास नहीं
नित सांस घुटती जो रहती है
ताजी सांसे आस – पास नहीं
देख परिंदों की आजादी को
परतंत्र मन को आए रास नहीं
बयां ना कर पाएं स्वेच्छा को
दास बनना आता रास नहीं
मनोभाव जहाँ सहमें – सहमें
अभिव्यक्ति का अधिकार नहीं
दम घुटता चार दीवारी में
मुख्यद्वार खुलें, जो आस नहीं
अंधेरों में अब दम घुटता है
बाह्य प्रकाश की आस नहीं
मन कुंठित,दुबका,घबराया सा
प्रफुल्लित होने की आस नहीँ
जहाँ दानव नगरी सा जीवन
सुबह शाम ईश अरदास नहीं
सुखविन्द्र कब होगा सूर्योदय
सूर्यास्त में जीना रास नहीं
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)