बंदिशों में बंद घर मकान हो गया
बंदिशों में बंद घर मकान हो गया
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घर में बैठ बन्द बुरा हाल हो गया
बन्दा था काम का बेकार हो गया
फुर्सत ए लम्हें, यार ना मिल पाते
यारों बिन यार ये बदहाल हो गया
आने जाने के खुले थे सभी रास्ते
बंदिशों में बंद घर मकान हो गया
काम बेशुमार में तन में थकान थी
काम बिना आराम हराम हो गया
तन में भूख थी,खाने का वक्त नहीं
वक्त है तो भूख का विराम हो गया
आसमां तले सांसे थी खुली-खुली
छत तले सांसों का रुकाव हो गया
सुखविंद्र परिन्दों सा है उड़ना चाहे
नभ में खुले उड़ना विचार हो गया
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल(