बंदिशे
नही मानता तमाम बंदिशें उनकी
जहा इज्जत ही ना हो आदमी की
वफा की कसमे खाया करते थे वो
गलियां वो पुरानी है कभी की
पडी क्या हमे वो खुद की खुद सोचे
यहा परवाह कभी खुद की नही की
सभी साधते है अपना स्वार्थ हमेशा
वो करते बात फिर इज्जत बेइजती की।
नही मानता तमाम बंदिशें उनकी
जहा इज्जत ही ना हो आदमी की
वफा की कसमे खाया करते थे वो
गलियां वो पुरानी है कभी की
पडी क्या हमे वो खुद की खुद सोचे
यहा परवाह कभी खुद की नही की
सभी साधते है अपना स्वार्थ हमेशा
वो करते बात फिर इज्जत बेइजती की।