” बंदिशें ज़ेल की “
समय को सामने से निकलता
देख तु, हाथ मलेगा
पश्चाताप के अग्नि में जलेगा
अपने आप से रूठ जायेगा
हृदय जब टूट जायेगा
जब कोई अनहोनी सी
खबर आयेगी
समय कीमत बतायेगी
बच्चों की याद आयेगी
पलकें भीग जायेंगी
फिर भी तेरी बात/मनुहार सुनी नही जायेगी
बंदिशें ज़ेल की एहसास करायेंगी कि
तूने तो गलती कर दी —————
जब कोई त्यौहार/उत्सव आयेगा
ख़ुद को धिक्कारेगा
आत्मग्लानि से भर जायेगा
तु ख़ुद को पराधीन देख
सिहर जायेगा —
अपनी बेबसी पर
सर टकरायेगा
तेरा मन हार जायेगा
गला रूंध जायेगा
तन्हाई आज़मायेगी
घर की याद आयेगी
फिर भी तेरी बात/मनुहार सुनी नही जायेगी
बंदिशें ज़ेल की एहसास करायेंगी
तूने तो गलती कर दी —————–
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता – मऊ (उ.प्र.)