”बंदगी”
हर तरफ़ जब बंदगी होने लगी!
ज़िंदगानी में खुशी होने लगी!!
इस जगत में सब मयस्सर है मगर!
आदमी की बस कमी होने लगी!!
खौफ़ दिल का उड़ गया जाने कहां!
मौत से जब दिल्लगी होने लगी!!
जिसको छोटा थे रहे हम मानते!
बात देखो वह बड़ी होने लगी!!
देख कर गंदी सियासत आज-कल!
अब मुसाफ़िर बेकली होने लगी!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
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