बंटवारा
बलदेव सिंह एक अच्छे किसान थे उनकी सूझबूझ और चतुराई के चर्चे सारे गांव में रहते थे। धर्म पत्नी रत्ना देवी भी मिलनसार एवं कुशल ग्रहणी थीं। बड़े बेटे राजकुमार एवं बेटी कुसुम की शादी हो गई थी। बलदेव जी नाती पोतों वाले हो गए थे। छोटे बेटे अजब सिंह की शादी होनी थी, पढ़ा लिखा था नौकरी के लिए प्रयासरत था लेकिन कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी। गांव में ही एक छोटी सी किराना दुकान खोली थी, आठवीं तक के बच्चों को पढ़ा भी लिया करता था, आय हो जाती थी। बड़े भैया खेती करते थे, पिता बुजुर्ग हो चले थे, सो काम में कम ही हाथ बंटा पाते थे सब कुछ अच्छा चल रहा था। अजब पढ़ा लिखा था पढ़ी लिखी बहू की तलाश हो रही थी, आखिर पास ही के गांव में रजनी नाम की युवती से अजब की शादी हो गई। घर में खुशियों का माहौल था बच्चों को चाची मिल गई, देवरानी जेठानी घर का काम कर लेतीं, सो रत्ना को भी राहत मिल गई थी, सब खुशी-खुशी रह रहे थे वैशाख का महीना था, फसल अच्छी हुई थी राजकुमार फसल बेचने शहर जा रहे थे, रत्ना ने कहा बेटा बच्चों को कुछ कपड़े लेते आना और बड़ी बहू का मंगलसूत्र भी टूट रहा है, कुछ पैसे मिला कर नया लेते आना राजकुमार ने हांमी भर शहर चले गए दिन भर सारे काम निपटा कर,घर आए बच्चों के लिए कपड़े मिठाई दी, बच्चे बहुत खुश हो गए, सीधे चाची को दिखाने पहुंच गए, चाची ने कहा बहुत सुंदर, हां चाची मां के लिए पापा मंगलसूत्र भी लाए हैं, तब तक मीना भी पहुंच गई मां मां हमने तो पहले ही चाची को बता दिया था। मंगलसूत्र देख रजनी ने खुश होने का अभिनय तो किया, लेकिन मन ही मन कुड गई बहुत अच्छा दीदी। रात को अजब दुकान बंद कर घर लौटा था, रजनी का उतरा हुआ चेहरा देख पूछ बैठा आज कुछ नाराज सी लग रही हो? क्या बात है? रजनी कुछ नहीं तुम्हें तो दीन दुनिया की कोई खबर है नहीं, अजब क्या बात है? अरे जेठ जी और दीदी मिलकर खेती की पैदावार से हाथ बना रहे हैं। कल को जब हम अलग होंगे तो हम तो हाथ पैरों से ही रह जाएंगे। अजब ने कहा रजनी कैसी बातें कर रही हो भैया भाभी बहुत ईमानदार हैं, बड़ी परेशानियों से मां पिताजी के साथ यह घर बनाया है। रजनी बोली तुम्हें तो कुछ समझ में नहीं आता पर तुम सुन लो, अब बंटवारा करवा लो, अब मैं इनके साथ नहीं रह सकती, बच्चों के कपड़े आ गए जेठानी को नया मंगलसूत्र मुझे क्या? रजनी तुम्हें तो अभी अभी शादी में नए जेवर बने हैं, कपड़े भी ढेर सारे हैं फिर यह कैसी नाराजगी? तुम लाख सफाई दो मैंने भी कह दिया सो कह दिया। वाद विवाद कर दोनों सो गए। अजब उठकर दुकान पर चला गया, रजनी सोती रही। रजनी को न देख बड़ी बहू, रजनी को चाय लेकर आ गई, रजनी ने कहा मुझे नहीं पीनी चाय वाय, आज लहजे में नाराजी झलक रही थी, मीना कुछ समझ न पाई बिना कुछ बोले उल्टे पैर लौट आई उस दिन से जैंसे वैर प्रीत और मद झुपते नहीं, सो देवरानी जेठानी के द्वेष भाव छुपे न रह सके। रत्ना भी दोनों के विचार व्यवहार से परेशान रहने लगी। कभी काम पर से कभी बच्चों पर से, आए दिन घर में कलह होने लगी। औरतों की रोज-रोज शिकायतें, द्वेष के कारण भाइयों में भी दूरियां बढ़ने लगीं, जो घर सूझबूझ एवं चतुराई के लिए जाना जाता था, अब महाभारत का मैदान बनते जा रहा था। बलदेव सिंह रत्ना बहुत परेशान हो गए थे। रोज रोज की लड़ाई घर की बदनामी से दोनों ने 1 दिन तय कर लिया बंटवारा कर ही दिया जाए।
दूसरे दिन बलदेव सिंह रत्ना ने दोनों बहू बेटों को बुलाया किस्मत से बेटी कुसुम भी आई हुई थी सब बैठे थे, बलदेव सिंह बोले ठीक है बेटा, अब तक अच्छी चली, आगे भी परिवार में सब अच्छा चले, सो बंटवारा कर लो, मेरे पास जो जमीन है, घर है, सो आधा आधा बांट लो, जमा पूंजी कुछ है नहीं अपना-अपना कमाओ और खाओ, दोनों ने सहमति दी। रजनी बोली बंटवारा अभी पूरा नहीं हुआ है, कुसुम बोली भाभी अब क्या बचा है मां बाबूजी को कौन रखेगा? यह भी निश्चित हो जाना चाहिए, दोनों भाई एक साथ बोल पड़े मां बाबूजी की कोई बात नहीं, किसी के साथ भी रह लेंगे। रजनी बोली नहीं आसान नहीं है, बुजुर्गों को दवा दारू का खर्चा, न रहने पर क्रिया कर्म का खर्चा, आसान बात नहीं, इसलिए एक भाई मां को रखें एक पिताजी को। कुसुम बोल पड़ी भाभी मां बाबूजी जिंदगी भर एक साथ रहे, क्यों बुढ़ापे में अलग-अलग कर रही हो? कुसुम ने कहा मां-बाप आपको भारी पड़ रहे हो तो मैं अपने साथ ले जाती हूं, रजनी बोली तुम रहने दो ननंद रानी, तुम अपना घर संभालो, हमने वहां की भी सब सुन रखी है, कुसुम चुप हो गई। मां बाप की आंखें नम हो गईं। घर में बीच से दीवार खड़ी हो गई। औलाद को प्यार दुलार से पालने वालों के बीच दीवार खड़ी हो गई। एक दूसरे का चेहरा देखने तरसने लगे, जब कभी मिलते एक दूसरे का सुख-दुख पूछ खुश हो लिया करते, क्योंकि जमीन जायदाद की तरह मां-बाप का भी बंटवारा हो चुका था। जीवन भर साथ साथ रहने वाले आज अकेले हो गए थे।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी