बंजारा
शीर्षक = बंजारा
हमेशा चहरे पर मुस्कान लिए सबको हँसाने वाला अमन आज सुबह से ही बहुत खामोश नजर आ रहा था मानो उसे कुछ हो गया हो इन्ही सब के चलते उसके करीबी सहकर्मी अमजद ने पूछ ही लिया
” क्या बात है अमन देख रहा हूँ सुबह से बड़े खामोश नजर आ रहे हो, सब ठीक तो है? ”
अमन : ” है भी और नही भी ”
अमजद : ” क्या मतलब इस बात से? ”
अमन : ” भाई यार आज मकान मालिक आया था उसने जो बताया उसके बाद से ही बस सारा मूड ख़राब हो गया ”
अमजद : ” क्यू ऐसा भी क्या कह दिया उसने? रेंट बड़ा दिया क्या? यही सबसे बड़ी समस्या है इन शहरों की बस जहाँ ज्यादा दिन हुए नही रेंट बड़ा देते है ”
अमन : ” अच्छा होता कि रेंट ही बड़ा देता, लेकिन उसने तो पहली तारीख़ से पहले कमरा खाली करने को बोल दिया है कह रहा था कोई और रहने आ रहा है परिवार के साथ ”
अमजद : ” ओह माई गॉड! ये तो बहुत बड़ी समस्या है फिर तो बाकि के लड़कों को भी रूम बदलना पड़ेगा क्यूंकि तुम भी तो शेयरिंग में रहते थे मेरी तरह ”
अमन : ” हाँ भाई सबको ही अब सर छिपाने की जगह ढूंढनी पड़ेगी, मैं तो तंग आ गया हूँ यूं बनजारों की तरह जिंदगी गुजार कर चार दिन यहां तो चार दिन वहां अभी कुछ महीने पहले ही इस जगह आया था और अब यहां से भी तबादला हो गया ”
अमजद : ” सही कहा भाई तुमने लेकिन कर भी क्या सकते है हम लोगो की तनख्वाह में तो हम इसी तरह शेयरिंग या फिर छोटा मोटा किराये का कमरा ही अफफोर्ड कर सकते है और वक़्त आने पर उसे छोड़ कर चले जाते है अपना तो लेने से रहे अभी अगर इतना आसान होता तो सबके पास अपना अपना फ्लैट होता ”
अमन : ” तुम नही जानते भाई मैं कबसे यूं ही बनजारों की तरह अपनी जिंदगी गुजार रहा हूँ, कक्षा 8 पास करके जो गांव से पढ़ाई के लिए बाहर निकला तो अब नौकरी भी लग गयी लेकिन घर ही नसीब नही हुआ कभी किराये के कमरे पर रहा तो कभी किराये के घर पर पता ही नही कब जान छूटेगी इन सब से ”
अमजद : ” ठीक कहा तुमने तुम तो खेर अभी कुंवारे हो तुम्हारी तो शादी नही हुयी है मेरी तो शादी भी हो गयी लेकिन फिर भी किराये के कमरों और घरों से मेरी जान नही छूटी पहले तो सिर्फ माँ और बहनें थी घर पर तब ही उसे छोड़ कर जाने का मन नही करता था अब तो तुम्हारी भाभी और एक भतीजी भी है अब तो बिलकुल भी मन नही करता कि उन्हें छोड़ कर यहां अकेले रहू लेकिन क्या कर सकते है मजबूरी है, मन तो करता है कि उसे भी अपने साथ रखू लेकिन फिर अम्मी अब्बू घर पर अकेले रह जायेगे और अगर सब को एक साथ यहां शहर में रखूंगा तो जो थोड़ी बहुत बचत कर लेता हूँ वो भी नही हो पायेगी बस इन्ही सब के चलते खुद को ही घर से बेघर करना सही समझा यहां कम से कम महीने भर काम करके तनख्वाह मिल तो जाती है घर वालो को भी आस लगी रहती है वरना खेती बाड़ी में तो सारा उधार ही चलता रहता था जो ऊगा लिया वही खा लिया
अमन : ” ठीक कहा तुमने भाई मैंने भी बस इन्ही सब के चलते शहर आने का फैसला किया था हमारे पास तो कोई ज़मीन जायदाद भी ज्यादा नही थी पापा सरकारी स्कूल में खाना बनाते थे वही से आठवीं पास कर आगे की पढ़ाई के लिए शहर चला आया पहले रूम पर रहकर पढ़ाई की और अब नौकरी पता नही ये सिलसिला कब तक चलता रहेगा हमें भी कभी घर नसीब होगा या यूं ही बनजारों की तरह जगह ही बदलते रहेंगे खेर तुम्हारी नजर में कोई कमरा हो तो बता देना कल रविवार है चल कर देख लूँगा वरना मकान मालिक समान निकाल कर फेंक देगा फिर मैं कहा उसे इकठ्ठा करता रहूंगा ”
अमजद : ” अरे! मेरे होते हुए ऐसी नौबत आ जाये तो मेरे होने पर नालत है, हमारे रूम मैं बात करता हूँ एक दो लोग है मेरे जानने वाले कही न कही शेयरिंग मिल ही जाएगी चल अब चाय पीने चलते है तेरे ऊपर ये उदासी अच्छी नही लगती वैसे ही रहा कर हमेशा मुस्कुराते हुए ”
अमन ने भी चहरे पर मुस्कान सजायी और ऑफिस कैंटीन में चाय पीने चले गए
समाप्त…
बस ऐसी ही होती है लड़कों की जिंदगी घर बनाने की ख्वाहिश लिए घरों से बेघर हुए फिरते रहते है कभी पढ़ाई के चलते, कभी नौकरी के चलते कभी दो पैसे बचाने के चलते