बँधा रहे परिवार…. ( अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस पर )
बना रहे घरद्वार सभी का,
बँधा रहे परिवार।
अपने आखिर होते अपने।
इनसे पूरे होते सपने।
इनकी खातिर सारा जीवन,
कर दें इनपर तन मन अर्पन।
इन पर कोई आँच न आए,
सुख का हो अंबार।
लड़ते – झगड़ते एक होते।
सबके सुख-दुख अपने होते।
एक अंग भी हो मुश्किल में,
कितने सबके प्राण कलपते।
बिन परिवार लगे जग सूना,
जीना हो दुश्वार।
बरतन चार अगर हों घर में,
खटक कभी जाया करते हैं।
सही राह चलने वाले भी,
भटक कभी जाया करते हैं।
संबल पाकर फिर अपनों का,
खिल उठता संसार।
मात-पिता बहन और भाई।
चुन-चुन गढ़ीं सुदृढ़ इकाई।
कितने रिश्ते गुँथे इन्हीं में,
दुनिया सकल इनमें समाई।
मानें तो है समग्र विश्व ही,
एक वृहद् परिवार।
विश्व कुटुंब जब एक हमारा
फिर क्यों कैसी रार।
मिलजुल कर सब रहें साथ में,
सुख की हो बौछार।
मधु रसकण जीवन में बरसें
गम हों सारे छार।
बना रहे घरद्वार सभी का,
बँधा रहे परिवार।
– © सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
” वेदांत” साझा काव्य संग्रह से