संविधान
तुम चलो गीता से चाहे, तुम चलो कुरान से।
हम तो एक फौजी हैं साहब, हम चले संविधान से।।
सड़क, झाड़ी, वन, पहाड़ी, हमने तो हर शूल झेले।
आग दरिया, बर्फ तूफानी, मुश्किलों से खूब खेले।।
माना दूर हैं भरपूर पर, परिवार, घर, संतान से।
हम तो एक फौजी हैं साहब, हम चले संविधान से।।
कोई लगाकर तिलक छापा, कहना चाहे जो कहें।
कोई पहन कर टोपी कुर्ता, रहना चाहे तो रहें।।
हम तो इतराते पहन, वर्दी को अपने शान से।
हम तो एक फौजी हैं साहब, हम चले संविधान से।।
कर्म ही है धर्म अपना, धर्म न कर्मो को छूता।
मन्दिर मस्जिद साथ होते, भेदभावों से अछूता।।
सुबह सवेरे नींद खुलती, घण्टी संग अजान से।
हम तो एक फौजी हैं साहब, हम चले संविधान से।।
मेरी दीदी उनकी आपा, उनकी अम्मी मेरी मौसी।
राम-राम कर सलाम, प्रेम से रहे हर पड़ोसी।।
ईद होली और दीवाली, मनाते हैं जी जान से।
हम तो एक फौजी हैं साहब, हम चले संविधान से।।
सोम मंगल जुम्मे जुम्मेरात, एक थाली एक ग्लास।
खाते पीते साथ ही सब, प्रीत की रोटी तृप्त की प्यास।।
एक ही धुन पर मिला कदम, चलते है सीना तान के।
हम तो एक फौजी हैं साहब, हम चले संविधान से।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०४/११/२०१९ )