फैसला
बेटे! जरा, देखो तो सही तुम्हारा परिणाम कैसा रहा। मैंने सुना है कि आज के अखबार में एचसीएस का परिणाम आया है। महेन्द्र के पिताजी ने उससे उत्सुकता पूर्वक पूछा।
हाँ, पिताजी आज परिणाम आया है, मेरा चयन नहीं हुआ । शायद मेरी किस्मत ही खराब है तभी तो हर साल साक्षात्कार में असफल हो जाता हूँ। महेन्द्र ने मायूस होते हुए जवाब दिया।
बेटे हर इन्सान को अपने कर्मों का फ ल अवश्य मिलता है, इसमें मायूस होने की जरूरत नहीं है। अगले साल तुहारा चयन जरूर हो जायेगा, मुझे पूरा भरोसा है। महेन्द्र के पिता ने उसका ढ़ांढ़स बंधाते हुए कहा।
नहीं, पिताजी अब मेरा इन बातों से विश्वास उठ गया है। पड़ोस के गाँव के रोशनलाल को देखो। उसका तो पहली बार में ही चयन हो गया। उसके अंक भी मेरे से कम थे। आस-पास के लोगों से सुना तो पता चला कि उसके पिता की बड़े-बड़े राजनेताओं से जान-पहचान है। इसी का फ फायदा उठाते हुए उन्होंने पचास लाख रूपये देकर रोशन का चयन पहले से ही पक्का करवा लिया । अब तुम्हीं बताओ पिताजी क्या फायदा है रात-रात भर जागकर पढ़ाई करने का।
मैंने तो अब फैसला कर लिया है कि कोई ठीक-सी पार्टी राजनितिक देखकर उसमें शामिल हो जाऊं । यह कहते हुए महेन्द्र ने अपनी किताबें एक ओर फैंक दी।
✍ सत्यवान सौरभ
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