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28 Aug 2024 · 1 min read

फैला था कभी आँचल, दुआओं की आस में ,

फैला था कभी आँचल, दुआओं की आस में ,
बिखरे थे कभी आंसू, तेरे इंतज़ार में।
सदियाँ बीती फिर कितनीं हीं, वक़्त के इम्तिहान में,
और तमन्नाएँ बिखर गयी, एक पुरानी किताब में।
सन्नाटा था गूंजता, शब्दों के अंतराल में,
हर धागा टूटता गया, रिश्तों की कतार में।
चलते थे कदम जब, रस्ते मिलते थे उधार में,
और बदलता गया अस्तित्व, जख्मों की बौछार में।
तन्हाइयों ने थामा हाथ, अँधेरी हर रात में,
गर्दिशों ने थपकियाँ देकर कहा, “मैं हूँ साथ में ”
धड़कनें मुस्कुराईं फिर इस, मरहमी एहसास में,
एक नयी रौशनी मिली मुझे, अँधेरे की तलाश में।
दुआएं पूरी होकर आयीं, एक दिन मेरे पास में,
और मौजूदगी तेरी हुई , इस क्षितिज के आकाश में।
पर अब तो रंगरेज ने रंग दिया मुझे, इस कोरे लिबास में,
और निखर गयी मोहब्बत मेरी, मेरे जज्बात में।
इस नयी “मैं” में नहीं बसता तू , किसी भी हालात में ,
टूटी “मैं” को तोडा था तूने, ठहरे विश्वास में।
अब गर्दिशों ने तराशा है मुझे, अमावस की रात में,
और उड़ानें मिली हैं इन पंखों को, आँधियों के पाश में।

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