” फेस बुक हमारा रंगमंच बना “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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अभिनय के विभिन्य भंगिमाओं से अपने कलात्मक कृतिओं का प्रदर्शन करते हैं !….. हमें यह चाह होती है कि हमारा प्रदर्शन सराहनीय हो !…तालिओं की गडगडाहट से सारा पंडाल गूंज उठे ! इसी को कलाकार अपनी पारितोषिक मान लेते हैं !….ह्रदय तो बाग- बाग तब हो उठते हैं ..जब कोई सामने आकर शावासी देता हो …कोई पीठ थपथपाता देता है ….और जब कभी किन्हीं श्रेष्ठों के आशीष हमारे सर पर पड़ते हैं !..दर्शकों की एकाग्रता के लिए हम कुछ नहीं कह सकते ! कुछ दर्शक हमारे प्रदर्शन को भले ही अनदेखी कर दें …कुछ… झपकियाँ भी लेने लगें …पर यदि हमारा अभिनय…. सशक्त ,सकारात्मक ,……संदेशात्मक और …..प्रभावशाली होंगे तो लोगों में एकाग्रता बनी रहेगी !…इनमें आलोचना ,उपहास ,परिहास और टीका-टिप्णियों का भी स्थान होता है !..हमें इसे भी सहर्ष स्वीकारना होगा !..हम अभिनय भी नहीं करेंगे …दर्शक भी नहीं बनेंगे …अपने मित्रों को सहयोग भी नहीं करेंगे ..तो फेसबुक का रंगमंच सजेगा कैसे…………….?…हम सभी के अभिनय को देखना और परखना चाहते हैं …. !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
एस० पी ० कॉलेज रोड
शिव पहाड़
दुमका
झारखण्ड
भारत