“फेसबुक मित्रों की बेरुखी”
“फेसबुक मित्रों की बेरुखी”
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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बने क्यूँ मित्र बोलो तुम ,
कभी नहीं बात करते हो !
छुपे हो पर्दों के पीछे,
कभी नहीं हमको दीखते हो !!
ना तुमको जान पाया मैं,
नहीं कोई ठिकाना है !
कहाँ रहते हो बोलो तुम,
सही तुमको बताना है !!
बने अंजान जीवन भर ,
सदा तस्वीर को देखें !
सदा तुम मौन रहते हो,
भला हम तुमसे क्या सीखें !!
ना दुःख में साथ है तेरा,
ना सुख में मिलने की चाहत !
गुजरते हो जो राहों से ,
ना सुनते हो कोई आहट !!
कभी तो पूछ लो हमको ,
सुदामा- कृष्ण बन जाओ !
रहो तुम दूर ही सब दिन ,
कभी तो पास तुम आओ !!
@ डॉ लक्ष्मण झा परिमल
16.10.2024