फेसबुक को पढ़ने वाले
फेसबुक को पढ़ने वाले मिल जाएंगे आपको करोड़ों में
पर साहित्य को पढ़ने वाले मिलेंगे हमें बस हजारों में ।
तो क्या साहित्य का मूल्य अब वह नहीं रह गया है।
या साहित्य को समझ सके अब वह मस्तिष्क नहीं रह गया है
फेसबुक झूठ पुलिंदा है किसी की प्रोफाइल पर किसी मुंडा है।
और जिसका चेहरा मासूम दिखाई देता है पता नहीं वह गुंडा है।
पर साहित्य सच का दर्पण है जो कहता है सो कहता है।
दिखावा नहीं है उसमें जीवन का अपार अनुभव है।
सोशल मीडिया के दीवानों से जरा पूछो तो मतवालों से उस असलील शायरी में क्या पढ़ा क्या लाईक किया क्या कमेंट किया।
जिसने समाज को नग्न किया और संस्कारों को भस्म किया।
नौजवान की ऊर्जा को मोबाइल में ही व्यस्त किया।
छोटी उम्र के बच्चों को अश्लीलता का पाठ पढ़ाया
नारी की अस्मिता को बाजार में नीलाम कराया।
साहित्य ने ही तो समाज को मार्गदर्शन और ज्ञान दिया
विश्व पटल पर भारत को विश्व गुरु का नाम दिया।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’