फूल सा चेहरा मुरझाया क्यों है
फूल सा चेहरा मुरझाया क्यों है
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फूल सा चेहरा मुरझाया क्यों है
वो यार दिलदार घबराया क्यों है
चहुं ओर खुशियों के भरे मेले हैं
भारी भीड़ में तू अकेला क्यों है
खिलें खूब फूल चमन हरा भरा है
खिले चमन में साथी तन्हां क्यों है
नीला आसमान रात तारों भरी
खूले नभ में परिंदा सहमा क्यों है
मौसम है साफ दोपहरी धूप भरी
बे मौसम ये बादल बरसा क्यों हैं
चेहरा जो मुस्कराता रहता था
जानेमन जानी बुझा बुझा क्यों है
सुखविन्द्र जिंदगी में बेपरवाह था
खाविंद परवाह में अनमना क्यों है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)