फूल में महक जबां पे फूलों का सिलसिला चाहिए
फूल में महक जबां पे फूलों का सिलसिला चाहिए
इक छोटा सा मक़ां हो न महल ना क़िला चाहिए
वही खिड़की वही मंज़र सूना सा गलियारे का
एक़ झरोखा चौराहे से घर का मिला चाहिए
शौख – हवाओं से कह दो गर गुज़रें इधर से तो
शाख ही नहिं हर पत्ता दिल-ए-शज़र का हिला चाहिए
चमकती चीज़ पर जाती है हर नज़र ज़माने की
बेशक़ दर्द रह जाए पर दाग़-ए-दिल धुला चाहिए
जिस को देखकर जीते हैं इस बेनूर दुनियाँ में
उस शख़्स का चेहरा हरदम गुलसा खिला चाहिए
हँसी चेहरा न तोहफ़ा कोइ हीरे -मोती का
कुछ और नहीं बस तुमसे वफ़ाओं का सिला चाहिए
दिल क्या तुम जान भी माँगो तो दे दें लेकिन
दोस्ती में ‘सरु’ को शिकवा न कोइ गिला चाहिए