वास्तव में ज़िंदगी बहुत ही रंगीन है,
जो भी मिल जाए मत खाओ, जो स्वच्छ मिले वह ही खाओ (राधेश्यामी छ
कर्म प्रकाशित करे ज्ञान को,
मजदूर का दर्द (कोरोना काल )– गीत
अनारकली भी मिले और तख़्त भी,
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए
व्यर्थ है मेरे वो सारे श्रृंगार,
आइये झांकते हैं कुछ अतीत में
संगीत वह एहसास है जो वीराने स्थान को भी रंगमय कर देती है।
हिना (मेहंदी)( फाल्गुन गीत)
इंसान की बुद्धि पशु से भी बदत्तर है
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)