* फूल खिले हैं *
* गीतिका *
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फूल खिले हैं सुन्दर प्यारे, प्रकृति है हर्षाई भी।
नव बसंत ने छटा निराली, सभी जगह बिखराई भी।
आपस में मिल कर बैठेंगे, बहुत दिनों के बाद कहीं।
भेदभाव सब दूर हटाकर, पाटेंगे हर खाई भी।
ऋतुएं सहज बदलती रहती, कहीं धूप गहरी छाया।
मन को सहसा हर लेती जो, सघन घटाएं छाई भी।
बिना भाग्य के कुछ न मिले है, इस दुनिया की रीत यही।
हासिल हो पाया सब लेकिन, कीमत खूब चुकाई भी।
नहीं चाहने से होता कुछ, खेल नियति का है ये सब ।
मिलता है आतिथ्य कभी तो, होती कभी विदाई भी।
सखियां आपस में बतियाती, झूले पड़ जाते सुंदर।
मधुर स्वरों से गूंजा करती, सावन में अमराई भी।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २९/०९/२०२३