फूल खिलते जा रहे
** गीतिका **
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डालियों पर हर जगह जब फूल खिलते जा रहे।
रूप अनुपम हैं प्रकृति के सब निखरते जा रहे।
हर रहे महसूस लेकिन सामने दिखते नहीं।
खुशबुओं के कण हवा में खूब घुलते जा रहे।
चैत्र का पावन महीना वर्ष नूतन आ गया।
भक्ति के शुभ भाव मन में नित्य जगते जा रहे।
जब खिला वातावरण है चाहतें वश में नहीं।
स्वप्न आंखों में नये सुन्दर हैं सजते जा रहे।
रंग नूतन खिल रहे हैं खेत में खलिहान में।
और खुशियों से भरे सब लोग दिखते जा रहे।
आपसी सौहार्द्र सबमें स्नेह का माहौल है।
हर जगह अनुकूल सब हालात बनते जा रहे।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हिमाचल प्रदेश)