फूल का मुस्तक़बिल
फूलों का एक पैमाना,
सिर्फ रंग नहीं होता है,
साथ उनका बड़ा ज़ाहिर,
मुस्तक़बिल जुड़ा होता है…
कोई बालों में सजा करता है,
कोई सज़दे में गिरा होता है,
कोई सिसकते अरमान लिए,
किताबों में दफ़न होता है…
गुलशन की आबोहवा में,
सब खिलते हैं साथ ही,
खुशबुओं का अंजाम पर,
जुदा अहसास लिए होता है…
फूलों का हश्र बिल्कुल,
दिल की ही तरह होता है,
भाता है महकता है फिर,
मुरझा के कुचला गया होता है..
©विवेक’वारिद’*