फूल- कली
मन के सांचे में ढलते ही जाना है
बहता पानी, जैसे अपना लगता है
ये हंसीन नज़ारे, जैसे मुस्काती हो
उनका यूँ शरमाना अच्छा लगता है
सरिता, झरने, मन भावन नज़ारे जैसे
फूल- कली का ये नज़राना लगता है
सबकी चिन्ता हर लेते हो तुम महादेव
उनकी पूजा करना सच्चा लगता है
छोटी- छोटी खुशियों, छोटे- छोटे पल
उनके अहसासों का नज़राना लगता है
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़, हरियाणा